About Us

इंटैक एक एनजीओ है जिसकी स्थापना वर्ष 1984 में दिल्ली में हुई थी इसको भारत सरकार तथा यूनेस्को से धरोहर संरक्षण हेतु मान्यता प्राप्त है वर्तमान देश भर में इसके 202 अध्याय हैं तथा एक विदेश में बेल्जियम में है इसका उद्देश्य देशभर में फैले अपने अध्याय के सदस्यों की सहायता से देशवासियों को अपने राष्ट्रीय विरासतों के प्रति जागरूक बनाना एवं उनके संरक्षण हेतु उनके दायित्व को समझाना है। इंटैक का लोगो उत्तर प्रदेश के शाहाबाद जिले की गंगा घाटी से प्राप्त दुर्लभ वस्तुओं को ख़जाने से ली गई तांबे की एक कलाकृति हैं। यह आदि मानव (1700-1800 वर्ष ईशा पूर्व) की सर्जनात्मक कलाशक्ति का परिचायक है और मनुष्य के रूप में ईश्वर की कल्पना साकार करता है।

विरासत को संक्षेप में समझे तो आपके परदादा जी की तलवार आपके लिए विरासत हो सकती है लेकिन राष्ट्रीय विरासत नहीं, जब तक कि उनका राष्ट्रीय स्तर का कोई योगदान न रहा हो | राष्ट्रीय विरासत पिछली पीढ़ियों द्वारा परंपरागत रूप से प्रदत्त सम्मान, गर्व एवं साहस का प्रतीक है विरासत की विभिन्न श्रेणियों पर इंटैक अपने विभागों द्वारा कार्य कर रहा है।

1.-शिल्प विरासत-ऐतिहासिक स्थल पुराने किले धार्मिक स्थान मानव निर्मित गुफाएं आदि की श्रेणी में आते हैं।

2.-प्राकृतिक विरासत-प्रमुख प्राकृतिक गुफाएं जंगली वन क्षेत्र जलस्रोत दुर्बल पशु पक्षी एवं विलुप्त प्राय जड़ी बूटियां।

3.-वस्तु एवं समुदाय विरासत- गई वस्तुएं तथा कलात्मक खिलौना उपकरण आदि।

4.-अमूर्त सांस्कृतिक विरासत-धार्मिक अनुष्ठानों पर कही जाने वाली लोक कथाएं नृत्य एवं गायन जन्म मृत्यु एवं अन्य मांगलिक अवसरों के रीति रिवाज सांझी कुंवर आदि के चित्र मौखिक रूप से गाए जाने वाले पारंपरिक गीत लोकोक्ति एवं मुहावरे।

इंटैक कि दिल्ली स्थित मुख्यालय में उपरोक्त सभी प्रकार के विरासत के संरक्षण हेतु अलग अलग विभाग खुले हैं अध्याय ओके सदस्य अपने क्षेत्र से उपरोक्त भी रास्तों को चिन्हित कर अपने संयोजक के माध्यम से मुख्यालय उन्हें सुरक्षित कराने का प्रस्ताव भेजते हैं।आपको भी अपने क्षेत्र में विरासत संबंधी कुछ दिखे तो इनटेक को अवश्य सूचित करें इनटेक ने अब तक 42000 से अधिक इमारतों को विरासत के रूप में चिन्हित किया है जिसमें से अधिकतर को विरासत का दर्जा दर्जा दिया जा चुका है।गोरखपुर अध्याय द्वारा चिन्हित की गई कुछ प्रमुख विरासत निम्नलिखित हैं। इनके संबंध में कार्रवाई की गई अथवा प्रगति पर है।

1. बसंत सराय-बसंतपुर मोहल्ले में स्थित इस किले का निर्माण श्रीनेत वंशीय क्षत्रिय राजा बसंत राय ने 1456 में कराया था।इसमें 62 कमरे हैं उन्हें संरक्षित कर दिल्ली हाट के दर्ज पर विकसित करने का प्रस्ताव नगर निगम में विचाराधीन है।

Railway

The Railway came into existence in 1882 and in the first instance it was given power to construct a line from Sonepur to Bahraich with branches to Benares, Nawabganj and Bahramghat. In 1885 the line from Sonepur to Bahraich with a branch to Ajodhia was opened to traffic. In 1890 the Tirhut State Railway was amalgamated with this line and the total mileage worked at this period was 704 miles. In 1898 connections were made with the Bombay, Baroda and Central India Railway at Gawn« pore and in 1902 with the Eastern Bengal Railway at Katihar, thus establishing communication by metre gauge across India. By 1912 the system was extended to approximately 2,000 miles and consolidafeed by the construction of nine large bridges over five important rivers. There are five ferries over the Ganges,

The sections of the Bengal and North-Western Railway serving the Gorakhpur district are as follows :—

Main Zone —

Traversing the southern half of the district for a distance of about 78 miles, entering pargana Salempur near Bankata station and thence running in a north-west direction through the stations of Bhatpar Rani, Bhatni, Nunkhar, tahsil Deoria, Gauri Bazar, Chauri Chaura and Kushmi to Gorakhpur, whence its course is due west through Domingarh, Jagatbela and Sahjanwa into the Basti district. This section was opened to traffic on 15th January, 1885. Near Jagatbela the lino crosses the Rapti by a bridge 1.445 feet in length, which was completed in June, 1886.

Uska Bazar Branch .—

This branch runs northwards from Gorakhpur through the stations of Maniram, Peepiganj, Rawat-ganj, Campierganj, Pharenda, Lehra and Bridgmanganj, where it turns west towards Uska and thence via Tulsipore to rejoin the main line at Qonda. The 37 miles which lie in the Gorakhpur district were opened on 16th December, 1886,

Bhatni-Banaras Branch.—

This branch runs south-west from Bhatni through the stations of Salimpur, Lar Road, Turtipar, a distance of 17 miles, where it crosses the Gogra by a bridge 3,911 feet in length. From Salimpur an offshoot of this branch runs westward to Satraon and Barhaj on the Gogra.

Bagaha Branch —

This line, runs north-east through Pipraich and Bodarwar to Captainganj, where it bends northwards, keeping to the west of the Chota-Gandak river through Ghughli to Siswa Bazar. About two miles beyond this station it turns east, crosses the river and runs on to Khada and Chhitauni crossing into the Ohamparan district. The branch was opened on the 7th February, 1907.

Additions and Alterations

Savan. This line, of which about 46 miles is in Gorakhpur district, was opened to traffic on 26th April, 1913. Mention may also be made of the line from Dohrighat to Kopaganj in Azamgarh, which was completed in 1904 and has brought Barhalganj within easy reach of the railway. The rail¬ ways are of immense help in providing cheap and rapid transport throughout the district and import impetus to trade and general development. Much, however, remains to be done, especially in the matter of linking up the road system with the railway. A branch is now under construction from Pharenda to Jfautanwan.