Heritage & Tourism

गोरखपुर परिक्षेत्र के इतिहास व विरासत पर जब हम दृष्टिपात करते हैं तो ज्ञात होता है इसका महत्व क्याव है और यह कितना प्राचीन है। गोरखपुर के विषय में मानव सभ्यता के विकास काल से ही विवरण उपलब्ध है। यहां के सोहगौरा एवं लहुरादेवा उतखनन द्वारा इस क्षेत्र में नवपाषण काल से ही मनुष्य संस्कृति के उत्तरोत्तर प्रगति व अस्तित्व के प्रमाण प्राप्त होते हैं। वैदिक काल में यह आर्य सभ्यता का केन्द्र रहा है। रामायण काल त्रेता युग में इसे 'कारूपथ' तथा महाभारत काल द्वापर युग में इसे 'मल्लराष्ट्र' नाम से सम्बोधित किया गया है।


अयोध्या के राजा रामचन्द्र ने इस क्षेत्र को अपने दो पुत्र में विभाजित कर लव को 'सारावती' जो आगे चल कर कोशल राज्य की राजधानी 'श्रावस्ती' बन गया तथा कुश को “कुशावती' प्रदान किया था जो भगवान बुद्ध के समय में कुशीनारा नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह क्षेत्र समूचे विश्व में प्रथम गणतंत्र शासन पद्धति के रूप में विकसित महाजनपदों व जनपदें का उद्गम स्थल रहा है। इस क्षेत्र में विकासित शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु, कोलियों की राजधानी रामग्राम, मौर्यों की राजधानी पिप्पलीवन तथा मल्लों की राजधानी कुशीनारा एवं पावानगर गणराज्य मानव सभ्यता के सर्वश्रेष्ठ विकसित प्राचीन नगरों में से एक थे।

गोरखपुर परिक्षेत्र / देवतुल्य तपस्वियों, ऋषियों एवं साधु-सन्तों का भी प्रिय स्थान रहा है। इस क्षेत्र में एक ओर जहां बौद्धधर्म प्रणेता गौतम बुद्ध, स्वामी नारायण सम्प्रदाय प्रणेता स्वामीनारायण एवं क्रियायोग प्रवर्तक परमहंस योगानन्द ने जन्मलेकर इस धराधाम को विश्व प्रसिद्ध किया है वहीं महायोगी गोरखनाथ, सन्तकबीर दास, गुरू नानक देव, देवरहवा बाबा, पौहारी महाराज, हनुमान प्रसाद पोद्दार 'भाई जी', ओंकारानन्द एवं राधाबाबा आदि संतों ने अपनी तपोभूमि बना कर गौरव प्रदान किया। इन समस्त ऋषियों एवं ईश्वर तुल्य संतों के अनुयायियों के लिए यह क्षेत्र दर्शनीय, पूज्यनीय एवं आदरणीय है। जहां वे आते रहते हैं।

गोरखपुर परिक्षेत्र स्वाधीनता संघर्ष एवं स्वतंत्रता सेनानियों की यादों से भी भरा हुआ है। इस क्षेत्र के अनेक रियासतों के राजाओं ने प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिया था और अंग्रेज उनकी वीरता से प्रभावित हुए थे। ऐसे सेनानियों में नरहरपुर के राजा हरि प्रसाद मल्ल , सतासी के राजा उदित नारायण सिंह, डुमरी के बाबू बन्धू सिंह, अमोढ़ा बस्ती की रानी तलाश कुंवरी, नगर बस्ती के राजा उदय प्रताप नारायण सिंह एवं शाहपुर गोरखपुर के सैयद इनायत अली शाह प्रमुख है | इन सभी देश भक्तों से जुड़े अनेक स्थान जैसे नरहरपुर का किला, रूद्रपुर सतासी राज्य का किला, बन्धु सिंह की पूज्य तरकुलहा देवी स्थान, छावनी शहीद स्थल बस्ती, चौरी-चौरा काण्ड स्थल, शहीद स्थल डोहरियाकला, मोती जेल गोरखपुर, सरदार अली मजार, कोतवाली गोरखपुर, शहीद राम प्रसाद विस्मिल फांसीपार व काल कोठरी मण्डलीय कारागार गोरखपुर, शहीद स्तम्भ, घण्टाघर गोरखपुर तथा सैयद इनायत अली शाही मजार, शाहपुर गोरखपुर क्षेत्र के अन्तर्गत है।

गोरखपुर अति प्राचीन विकसित क्षेत्र था इसलिए यहां पर सैकड़ो ऐसे स्थान है जो सदियों पूर्व यहां के राजाओं, ऋषियों व सन्तों द्वारा हमें धरोहर के रूप में प्राप्त हुई हैं। भगवान श्री राम की यादगार स्वरूप इस जनपद का रामजानकी मार्ग जनकपुर से अयोध्या तक उनकी विवाह यात्रा से जुड़ा है जिस पर कई दर्शनीय स्थान है। बस्ती में मखौढ़ा वह स्थान है जहां महाराज दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ रकर पुत्र प्राप्त किया था। महाभारत काल में पाण्डवों के वनवास यादगार के रूप में इस क्षेत्र में लेहड़ा देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। ईसा पूर्व इस क्षेत्र में जन्म लिए भगवान बुद्ध की यादों से जुड़े बौद्ध सर्किट के हृदय स्थल पर अवस्थित गोरखपुर की पर्यटन दृष्टि से सदैव उपयोगिता रही है। गोरखपुर को केन्द्र बना कर तथागत के जीवन से जुड़े जन्म स्थान लुम्बिनी (नेपाल), बाल क्रिड़ा स्थल कपिलवस्तु, परिनिर्वाण स्थली कुशीनगर तथा प्रवचन स्थल श्रावस्ती का भ्रमण किया जा सकता है क्योंकि गोरखपुर रेलमार्ग, वायुमान मार्ग से जुड़ा होने के साथ ही सभी प्रकार के संसाधनों से युक्त है। भगवान बुद्ध से पूर्व देवरिया सलेमपुर मार्ग पर जैन धर्म के नौंवें तीर्थकर पुष्पदंत नाथ की जन्मस्थली, तपस्थली एवं ज्ञान स्थली खुखुन्दू (प्राचीन काकंदी) उनके चार कल्याणकों के लिए विश्वविख्यात, श्रद्धा का केन्द्र एक दर्शनीय स्थान है जहां जैन पर्यटक आते रहते हैं।

महायोगी गुरू गोरखनाथ जिसने इस जिले को अपना नाम दिया उनकी तपस्थली व समाधिस्थली के रूप में यह स्थान विश्वप्रसिद्ध है। नाथ पंथ में गोरखपुर का अति विशिष्ट स्थान है। यहां का गोरखनाथ मंदिर अति दर्शनीय पर्यटक केन्द्र में विकसित हो चुका। गोरखनाथ मंदिर परिसर में लगने वाल मकर संक्राति मेला इस क्षेत्र के अतिरिक्त पूरे भारत के लोगों के लिए आकर्षण का अवसर प्रदान करता है।यहां का मकर संक्राति मेला अपने आप में अनूठा एवं देश का एक मात्र मेला है। नाथ संप्रदाय से जुड़ा बलरामपुर के निकट तुलसीपुर में लगने वाला पाटन देवी मेला चैत्र नवरात्र के समय देश के विशाल मेले में अपना स्थान रखता है। इन दोनों स्थानों पर इस क्षेत्र के पर्यटाकों के अतिरिक्त पूरे भारत के लोग भ्रमण हेतु आते-जाते रहते हैं।

सन्तकबीर नगर का केन्द्र मगहर संतकबीर दास की साधना स्थली एवं स्वर्ग स्थली है। इस स्थान पर देहत्याग कर कबीरदास ने केवल काशी में ही मरने पर मोक्ष होता है का खण्डन करते हुए यह दिखा दिया कि मोक्ष सद्कमों से होता है। मगहर में उनकी निर्वाण स्थली पर निर्मिम मन्दिर-मस्जिद हिन्दू मुस्लिम सहअस्तित्व का एक अनोखा उदाहरण है। यहां की कबीर गुफा भी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र है।

बस्ती से पश्चिम गोण्डा के रास्ते पर स्वामी नारायण छपिया रेलवे स्टेशन के समीप छपिया स्वामी नारायण सम्प्रदाय के संस्थापक का जन्मस्थान है। इस सम्प्रदाय के लोग गुजरात में बहुतायत संख्या में है जों उन्हें भगवान मान कर पूजते हैं। देश के अनेक प्रमुख स्थानों पर इस सम्प्रदाय के लोगों ने अति दर्शनीय मंदिरों की स्थापना किया है। इस सम्प्रदाय से जुड़े गुजराती पर्यटक गोरखपुर से होते हुए अपने सम्प्रदाय संस्थापक के जन्मस्थान का दर्शन पूजन करते हैं।

देवरिया का देवरहवा बाबा साधना स्थल मईल, स्वामी देवानन्द की तपोभूमि मठलार, अनन्त महाप्रभु व बाबा राधवदास की कर्मस्थली बरहज आश्रम, तुर्कपट्‌टी स्थित सूर्य मन्दिर एवं पावानगर (फाजिलनगर) का जैन तीर्थंकर महावीर का निर्वाण स्थल पर्यटकों को अपनी ओर आने का निमंत्रण देते हैं यहां के अनेक स्थान स्वतंत्र आन्दोलन के केन्द्र भी रहे हैं उनमें भाटपार रानी, बरहज, पैना, सिसई एवं देवरिया तहसील की पुरानी इमारत उनके बलिदान की कथा बयां करते हैं। गोरखपुर परिक्षेत्र का केन्द्र यहां का महानगर भी अपने आप में एक पर्यटन हब है। जहां ऐतिहासिक, धार्मिक एवं प्राकृतिक सभी प्रकार के स्थानों पर जाकर आनन्द लिया जा सकता है। यहां के ऐतिहासिक विरासतों में बसन्तो सराय, रीड साहब धर्मशाला, एन.ई.रेलवे संग्रहालय एवं नक्षत्रशाला प्रमुख स्थान है। धार्मिक विरासतों में शहर का संगी मस्जिद, इमामबाड़ा मोबारक खां मकबरा, मानसरोवर व मंदिर, सूरजकुण्ड धाम मंदिर, बसियाडीह देवी मंदिर, हनुमान गढ़ी, हट्ठीमाई मंदिर, खाकी बाबा समाधि, जैन मंदिर, गुरूद्वारा जटाशंकर, झारखण्डी महादेव, बुढ़िया माई मंदिर व विष्णु भगवान मंदिर, आर्कषक पर्यटक केन्द्र है। गोरखपुर का गीताप्रेस विश्व प्रसिद्ध है जहां के संग्रहालय में विभिन्नख प्रकार के गीता रचनाओं का विशाल संग्रह अवलोकनार्थ रखा हुआ है। यहां की गीता वाटिका एक ओर हनुमान प्रसाद पोद्दार व राधाबाबा का साधना स्थली है। तो यहां का राधाकृष्ण मंदिर अति सुन्दर व दर्शनीय है। गोरखपुर के प्राकृतिक विरासतों में रामगढ़ताल मुम्बई के मैरीन ड्राईव व नैनीताल में नजारों से भी सुन्दर है। यहां से महराजगंज जाकर सोहगीबरवा अभ्यारण्य में वन्य जीवों से साक्षात्कार कर प्राकृतिक छटा का आनन्द लिया जा सकता है। गोरखपुर से नेपाल के पोखरा, तानसेन एवं काठमान्डू आदि स्थानों पर भ्रमण के लिए जाते रहते हैं।

इस प्रकार गोरखपुर क्षेत्र ऐतिहासिक, धार्मिक एवं प्राकृतिक छटाओं से परिपूर्ण है। इसको केन्द्र बनाकर यहां से सभी दिशाओं में जाकर अनेक प्रकार से दूर पैकेज बनाकर घूमने एवं आनन्द लेने के संभावनाओं से भरा हुआ है। आवश्यकता है तो केवल मनुष्य की सुविधाओं एवं आवश्यकताओं को पूरा करने के संकल्प की।